Thursday 27 October 2011

...ज़िद है...




साहिल पे रेत का घर बना के ,
लहरों से रिश्ता बनाने की ज़िद है.

चाँद को तकिया बना के,
सूरज को बिछाने की ज़िद है.

देखते हैं तासीर हम भी,
 अपने इरादों की.

हमको तो तकदीर से भी
टकराने की ज़िद है.

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