Monday 3 October 2011

देख ज़रा इस दुनिया को,..

देख ज़रा इस दुनिया को,
तू क्यूँ बेज़ार यूँ होता है ?
दुनिया में कितना गम है ,
तू अपने गम को रोता है ...

तू देख ज़रा उन लोगों को ,
जो हर पल ऐसे जीते हैं .
खाने को न जिनके रोटी ,
न तन पे कपडा होता है ...

गर्मी की तपन या ठण्ड गले ,
बारिश हो या तूफान चले .
न किनारा कोई, न सहारा कोई ,
फिर भी जीवन से लड़ता है ...

जब पेट की आंग जलाती है ,
पर्वत सा बोझ उठाता है .
एक वक्क की रोटी खाने को ,
वो कुंदन सा तप जाता है ...

इतने में भी ये होता है ,
बस पानी पी भूख मिटाता है .

जिनके बच्चे भी जीने को
दर-दर की ठोकर खाते हैं .
टाफी,बिस्कुट,चोकोलेट तो क्या ,
भरपेट न रोटी पाते हैं ...

अपने गम से बाहर झांको ,
और देखो जग की लाचारी .
कैसे - कैसे हैं लोग यहाँ ,
कैसे चलती जीवन गाड़ी ...

है दर्द तेरे दिल में भी अगर ,
तो उनके दर्द को पहचानो .
गर बाँट सको उनके गम को
इससे बेहतर कुछ न मानो .

दर्द तेरा मिट जायेगा,
तुझको भी सुकून मिल जायेगा .
क्यूँ दिल के सुकून को छोड़ के तू ,
दौलत का बोझ उठता है ..?

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